जोखिमभरी हिप बोन रिप्लेसमेंट के बावजूद सौ वर्षीय की भी हो सकती सामान्य मूवमेंट

एक समय था जब वृद्ध, विशेष रूप से 100 वर्ष की आयु के करीब के लोग, गिरने और फ्रैक्चर के बावजूद बिना किसी उपचार के अपने जीवन का बाकी समय दूसरों पर निर्भर हो कर या खुद का ख्याल रखते थे, ये आम बात थी। उनके पास तेज अंदरूनी रक्त रिसाव, ब्लड क्लोट, लम्बे समय तक खाट पर लेटे रहने के कारण होने वाले फोड़े(बेड-सोर) या अन्य जटिल पीड़ादायक समास्याओं और असहनीय दर्द के साथ जीने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता था। लेकिन अब चिकित्सा विज्ञान में हुई नवीनतम प्रगति के कारण ऐसा नहीं है।
उलेखनीय बात तो ये है कि भारत में 50 वर्ष से अधिक आयु की लगभग 50% महिलाओं और 20% पुरुषों को आॅस्टियोपोरोसिस है, जो वृद्ध लोगों में हिप बोन फ्रैक्चर का एक प्रमुख कारण है।
एक सर्वेक्षण के अनुसार 2026 तक, भारत में हिप फ्रैक्चर की संख्या में वृद्धि होगी और मुख्य रूप से वृद्ध लोगों में प्रति वर्ष लगभग 600,000 आॅस्टियोपोरोटिक हिप फ्रैक्चर होंगे। एक मेडिकल अनुसंधान में पाया गया है कि हिप बोन फ्रैक्चर 15% से 36% मृत्यु दर का कारण बनते हैं। जर्नल आॅफ क्लिनिकल आॅथोर्पेडिक्स एंड ट्रॉमा में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि भारत में हर दो साल में हिप फ्रैक्चर के रोगियों का मृत्यु दर लगभग 11.2% है।
ये एक आम बात है कि भारत में मूल रूप से वृद्ध लोगों को समय पर हिप फ्रैक्चर के कारण सीमित आॅथोर्पेडिक और पुनर्वास सुविधाओं का सामना करना पड़ता है। इसलिए, भारत में हिप फ्रैक्चर के रोगियों के सटीक, प्रभावी उपचार व पुनर्वास के लिए कार्यकुशल और बहुगुणी प्रबंधन की आवश्यकता है।
वरिष्ठ आॅथोर्पेडिक सर्जन डॉ. राहुल शर्मा के अनुसार, ‘65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए हिप फ्रैक्चर एक खतरनाक और जटिल समस्या है। ऐसे मरीज ना तो खड़े हो सकते हैं, ना ही चल सकते है, टूटे हुए कूल्हे पर वजन डाल सकते हैं। अचानक गिरने या अन्य चोटों के कारण हिप बोन फ्रैक्चर को रोका भी नहीं जा सकता क्योंकि कोई भी व्यक्ति खुद गिरने की योजना नहीं बनाता। आमतौर पर उपचार के बाद टूटे हुए कूल्हे के पूरी तरह ठीक होने या उसमे पूर्ण सुधार देखने के लिए कुछ महीने और कभी-कभी साल लग जाता है, जो रोगी की उम्र, उसके संपूर्ण स्वास्थ्य, फ्रैक्चर के कारण, सर्जरी के प्रकार और अन्य चोटों पर निर्भर करता है।’
कोई भी स्वास्थ्य स्थिति जो संतुलन, स्थिरता या चलने की क्षमता को प्रभावित करती है, कूल्हे के टूटने का कारण बन सकती है। रोगी की उम्र जितनी अधिक होगी, उसके शरीर की चोट को ठीक होने में उतना ही अधिक समय लगता है। यह बात तब और भी अधिक सच हो जाती है जब कूल्हे की हड्डी में मल्टीपल फ्रैक्चर हो जाता है। वृद्ध लोगों के कूल्हे के फ्रैक्चर का इलाज और उससे उभरने के लिए सर्जरी करना बहुत कठिन है।
डॉ. राहुल शर्मा के अनुसार, ‘वृद्ध लोगों में विशेष रूप से 100 वर्ष की आयु के करीब के लोगों में, गिरने और फ्रैक्चर का जोखिम और भी अधिक होता है। ऐसे लोग गिरने और फ्रैक्चर के लिहाज से अधिक संवेदनशील होते हैं। अधिक उम्र के कारण उनमें गतिशीलता, संतुलन और ताकत भी कम होती है। इसके अलावा आॅस्टियोपोरोसिस, दृष्टि या सुनने की शक्ति में कमी, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग भी गिरने, फ्रैक्चर और चोटों का प्रमुख कारण बनते हैं।
देखा जाए तो खराब रोशनी, फिसलन भरे ऊबड़-खाबड़ फर्श, खराब तलवों या ट्रैक्शन वाले जूते, चक्कर और निद्रा पैदा करने वाली दवाएं भी गिरने का जोखिम बढ़ाती हैं। गिरने और फ्रैक्चर के परिणामस्वरूप बुजुर्गों की आजादी, गतिशीलता, और जीवन की गुणवत्ता में कमी आती है।
कूल्हे का फ्रैक्चर वृद्धों कीजीवन शैली और उनकी देखभाल करने वालों पर आर्थिक बोझ के साथ साथ स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को भी प्रभावित करता है, जिससे देखभाल की जरूरतें बढ़ जाती हैं। इस कारण भारत में कई वृद्धों को समय पर कूल्हे के फ्रैक्चर के लिए उचित स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जर्नल आॅफ क्लिनिकल आॅथोर्पेडिक्स एंड ट्रॉमा में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, सौ साल के केवल 16.1% रोगी सर्जरी के एक साल बाद बाहर चलने में सक्षम थे, जबकि 83.9% को घर के अंदर ही रहना पड़ता था।
भारत में वृद्धों में कूल्हे का फ्रैक्चर एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए चिंता का विषय है जिसका प्रभाव, रोगियों, उनके परिजनों और सम्पूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ेगा एक अन्य अनुमान के अनुसार, 50 वर्ष से अधिक आयु की 3 में से 1 महिलाओं और 5 में से 1 पुरुषों को अपने जीवनकाल में आॅस्टियोपोरोटिक फ्रैक्चर का अनुभव होगा। जिस तरह वृद्ध लोगों की आबादी बढ़ रही है, आने वाले वर्षों में, भारत में हिप फ्रैक्चर के रोगियों की संख्या में वृद्धि होने की उम्मीद है। विशेष रूप से पुरुषों की तुलना में महिलाओं में हिप फ्रैक्चर होने की संभावना अधिक है। परिणामस्वरूप, 100 वर्ष की आयु के करीब के बुजुर्गों का मृत्यु दर को कम करने और जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए हिप फ्रैक्चर के तुरंत और प्रभावी प्रबंधन की आवश्यकता है।
हिप रिप्लेसमेंट आमतौर पर सुरक्षित सर्जरी होती है जिसमें आमतौर पर एक से दो घंटे लगते हैं। अगर सब कुछ ठीक रहे, तो मरीज छह से 12 हफ़्तों में कूल्हे का उपयोग कर, उठ बैठ, चल फिर, सीढ़ियाँ चढ़ या उतर, वॉशरूम जा, नहा, और कपड़े पहन सकता है। इसका एक जीता जागता उदाहरण एससी कपूर एक 100 वर्षीय व्यक्ति हैं, जिन्हें अपने घर में गिरने के बाद हिप जॉइंट में बड़े फ्रैक्चर के कारण मेडिकल इमरजेंसी और तीव्र असहनीय दर्द का सामना करना पड़ा। वरिष्ठ आथोर्पेडिक सर्जन और जॉइंट रिप्लेसमेंट एक्सपर्ट डॉ. राहुल शर्मा ने उन्हें तत्काल और वैकल्पिक हिप बोन रिप्लेसमेंट सर्जरी की सलाह दी, जो उनके फ्रैक्चर के प्रकार और संबंधित बीमारियों के उपचार का एकमात्र समाधान था। डॉ. राहुल शर्मा और उनकी टीम ने चुनौती स्वीकार कर लगभग 90 मिनट तक चली जटिल हिप आर्थ्रोप्लास्टी सर्जरी (जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी) को अंजाम दिया और संक्रमण रोकने के लिए एसेप्सिस के उच्चतम मापदंड का पालन किया।
सर्जरी के लगभग 3 दिन के बाद रोगी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई । वह अब पुनर्वास से गुजर रहा है और आराम से चल सकता है। लाइफ इन मोशन क्लिनिक के संस्थापक और कूल्हे, घुटने और कंधे की सर्जरी के विशेषज्ञ डॉ राहुल शर्मा (जो सावन नीलू एंजेल्स हॉस्पिटल, साकेत, नई दिल्ली में अभ्यास करते हैं। उनके अनुसारअच्छे परिणामों के साथ एक सफल सर्जरी न केवल मेडिकल टीम को संतुष्टि देती है, बल्कि रोगी के मन में चिकित्सा पद्धति पर विश्वास भी उत्पन करती है। वृद्ध लोग हमारे समाज का सबसे संवेदनशील वर्ग हैं, जिन्हे बेहतर जीवन और उचित चिकित्सा सुविधा की आवश्यकता है। यह उनका हक भी है।