यूपी में पहली बार टाइटल-बेस्ड रजिस्ट्री: अब बिना मालिकाना हक़ जांचे कोई संपत्ति नहीं बिकेगी!
डिजिटल वेरिफिकेशन से फर्जी रजिस्ट्री पर रोक
राजस्व और नगर निकाय डेटा इंटीग्रेशन से खरीदार को मिलेगा टाइटल-सिक्योर भरोसा
NEWS1UP
विशेष संवाददाता
लखनऊ। उत्तर प्रदेश जल्द ही संपत्ति पंजीकरण की उस सबसे बड़ी खामी को बंद करने जा रहा है, जिसने वर्षों से खरीदारों को धोखे का शिकार बनाया और अदालतों को भूमि विवादों से बोझिल किया है। सूत्रों के हवाले से मिल रही जानकारी के अनुसार राज्य सरकार दस्तावेज़-आधारित पंजीकरण को हटाकर टाइटल-आधारित रजिस्ट्रेशन सिस्टम लागू करने की तैयारी में है, एक ऐसा मॉडल जिसमें सिर्फ कागज़ी दस्तावेज़ नहीं, बल्कि वास्तविक मालिकाना हक़ की डिजिटल जांच के बाद ही रजिस्ट्री संभव होगी।
सूत्रों के अनुसार, प्रस्ताव अगले सप्ताह कैबिनेट के सामने रखा जाएगा। यह बदलाव ऐसे समय में आ रहा है जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विभागों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि तकनीकी और प्रक्रियागत सुरक्षा तैयार कर फर्जी रजिस्ट्री पर पूरी तरह रोक लगाई जाए।
अभी तक की प्रणाली: दस्तावेज़ सही तो रजिस्ट्री सही, भले ही जमीन किसी और की हो!
मौजूदा व्यवस्था में उप-पंजीयक सिर्फ वह दस्तावेज़ दर्ज करता है जो खरीदार–विक्रेता प्रस्तुत करते हैं। न तो विक्रेता की असली हैसियत की जांच होती है, न यह पड़ताल कि जमीन पर कोई मुकदमा, कब्ज़ा, बंधक या सरकारी प्रतिबंध तो नहीं है। इसी ‘ब्लाइंड रजिस्ट्री सिस्टम’ ने विशेष रूप से शहरों में, जहां रिकॉर्ड कई विभागों में बिखरे होते हैं, हजारों मुकदमों और करोड़ों की धोखाधड़ी को जन्म दिया।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार किया-
“हम अब तक टाइटल की जांच में रुचि ही नहीं लेते थे। दस्तावेज़ सही लगे तो रजिस्ट्री कर दी जाती थी। इसी वजह से फर्जी बिक्री, बहु-बिक्री या किसी और की जमीन बेच देना आम हो गया।”
रजिस्ट्री से पहले ‘रियल-टाइम टाइटल वेरिफिकेशन’
सरकार अब विभागीय डेटा को जोड़ते हुए एक इंटीग्रेटेड डिजिटल प्रॉपर्टी सिस्टम बना रही है।
राजस्व परिषद (Board of Revenue)- ग्रामीण भूमि रिकॉर्ड (खसरा, खतौनी आदि)
नगर निकाय- प्रॉपर्टी टैक्स और भवन विवरण
विकास प्राधिकरण/शहरी एजेंसियाँ- नक्शे, मंजूरी, भू-उपयोग, अलॉटमेंट विवरण
इन सभी का API इंटीग्रेशन लगभग पूरा हो चुका है। अब उप-पंजीयक के सामने एक ही स्क्रीन पर संपत्ति की हर लेयर की जानकारी खुल जाएगी—स्वामित्व, श्रेणी, विवाद, प्रतिबंध, टैक्स बकाया, यहां तक कि किसी तालाब/सरकारी भूमि पर अवैध बिक्री की कोशिश भी तुरंत पकड़ में आ जाएगी।
एक अधिकारी कहते हैं-
“अब रजिस्ट्री तभी होगी जब सिस्टम यह पुष्टि कर देगा कि बेचने वाला वास्तव में मालिक है और संपत्ति में कोई त्रुटि या बाधा नहीं है।”
अन्य राज्यों से सबक और यूपी की नई राह

महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने टाइटल पंजीकरण के कुछ तत्व अपनाए हैं। यूपी अब अधिक व्यापक और तकनीक-आधारित मॉडल लाने जा रहा है। प्रमुख सचिव, स्टाम्प एवं पंजीकरण, अमित कुमार गुप्ता ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि इससे फर्जी रजिस्ट्रियों पर निर्णायक प्रहार होगा।
खरीदार सुरक्षित, दलालों और फर्जी गिरोहों पर लगाम
नई व्यवस्था लागू होने के बाद भू-माफिया और गिरोहों द्वारा सरकारी या विवादित भूमि बेचने के मामले लगभग समाप्त होंगे। खरीदार को एक टाइटल-सिक्योर संपत्ति मिलेगी, जिससे भविष्य के कानूनी जोखिम कम होंगे। न्यायालयों में भूमि विवादों का बोझ घटेगा। शहरी क्षेत्रों में रिकॉर्ड की खामियों का फायदा उठाकर होने वाली बहु-रजिस्ट्री (duplicate sale) जैसी समस्याएँ खत्म होंगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव यूपी की अब तक की सबसे बड़ी भूमि प्रशासनिक सुधार पहल साबित हो सकता है, जो न सिर्फ रजिस्ट्री को सुरक्षित बनाएगा, बल्कि रियल एस्टेट बाज़ार में विश्वास भी बढ़ाएगा।
