गाजियाबाद में हाउस टैक्स पर निगम की मनमानी !

सदन के फैसले की धज्जियां उड़ाकर जनता से जबरन वसूली
आरडब्लूए, एओए, सामाजिक, राजनैतिक संगठन सड़क पर, हाईकोर्ट में चुनौती
NEWS1UP
भूमेश शर्मा
गाजियाबाद। हाउस टैक्स के मामले में नगर निगम की मनमानी अब हद पार करती दिख रही है। सदन के स्पष्ट फैसले और नियमों की अनदेखी करते हुए निगम प्रशासन जबरन तीन सौ फीसदी की दर से टैक्स वसूली में जुटा है। नतीजा यह है कि आम जनता पर बेहिसाब बोझ लाद दिया गया है और लोग बेवजह की आर्थिक मार झेलने को मजबूर हैं।
बढ़े हुए टैक्स के खिलाफ जनता में गुस्सा उबल पड़ा है। राजनीतिक दल, व्यापारी संगठन, आरडब्लूए, एओए, सामाजिक संगठन सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन महापौर और नगरायुक्त के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही। उल्टे बीस प्रतिशत छूट का झुनझुना पकड़ाकर टैक्स जमा करने की आखिरी तारीख 30 सितंबर से बढ़ाकर 31 अक्टूबर कर दी गई है। इस बीच पूर्व पार्षदों का एक प्रतिनिधिमंडल इस गैरकानूनी वसूली के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा चुका है। सुनवाई 9–10 अक्टूबर के आसपास होनी तय है। आज वसुंधरा क्षेत्र में वैशाली, कौशाम्बी, और इंदिरापुरम के सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं ने एक दिन का उपवास रखकर अपना विरोध प्रकट किया! साथ ही साथ नगर निगम प्रशासन को चेतावनी दी कि यदि टैक्स के नाम पर लूट नहीं रोकी गयी तो 15 दिनों के बाद निगम का घेराव किया जायेगा।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब निगम के सर्वोच्च पद पर आसीन महापौर स्वयं ही तीन सौ प्रतिशत वृद्धि के प्रस्ताव को निरस्त कर चुकी हैं, तो आखिर निगम प्रशासन किस आधार पर वसूली कर रहा है? क्या यह सदन के फैसले को धता बताकर जनता के साथ सीधा खिलवाड़ नहीं है? शहर में कयास लगाए जा रहे हैं कि निगम के अधिकारी जनता के साथ दोहरा खेल खेल रहे हैं।

“35 साल में पहली बार सदन की धज्जियां” – अनिल स्वामी
नगर निगम के वरिष्ठ नेता और 35 वर्षों तक पार्षद रहे अनिल स्वामी का कहना है—
“अपने पूरे कार्यकाल में मैंने ऐसा कभी नहीं देखा कि सदन के फैसले को इस तरह रौंदा गया हो। सदन सर्वोच्च है और धारा 537 भी यही कहती है। निगम अगर बढ़े टैक्स का शासनादेश दिखा दे, तो जनता मान ले। लेकिन हकीकत यह है कि ये जबरन और अवैध वसूली है।”
स्वामी का आरोप है कि निगम के वकील हाईकोर्ट में सुनवाई को टालने और मामले को लटकाने की चालें चल रहे हैं, क्योंकि उनके पास टैक्स वृद्धि के समर्थन में कोई ठोस दलील नहीं है।
“आंकड़ों में छलावा” – हिमांशु मित्तल

पूर्व पार्षद हिमांशु मित्तल कहते हैं—
“निगम दावा कर रहा है कि अब तक 100 करोड़ रुपये टैक्स जमा हुआ। लेकिन सच्चाई यह है कि बहुत से लोग केवल म्यूटेशन और नो ड्यूज सर्टिफिकेट की मजबूरी में टैक्स भर रहे हैं। पिछले साल कलेक्शन 300 करोड़ था। अगर इस बार 300% वृद्धि लागू होती तो वसूली 900 करोड़ होनी चाहिए थी। लेकिन आंकड़े बहुत कम हैं। यह निगम की कपटपूर्ण दलील है।”

“पार्षदों की गरिमा कुचली जा रही है” – नीरज गोयल
पार्षद नीरज गोयल का कहना है—
“सदन का निर्णय ही अंतिम होता है। लेकिन निगम न केवल सदन की अनदेखी कर रहा है, बल्कि पार्षदों की गरिमा पर भी चोट कर रहा है। जो पार्षद महापौर या नगरायुक्त से सहमत नहीं हैं, उनके कोटे के काम रोक दिए जाते हैं। यह जनता के जन-जीवन के साथ खिलवाड़ है।”
गोयल ने दावा किया कि पार्षदों का एक दल मुख्यमंत्री को ज्ञापन देने लखनऊ रवाना होगा।
“जनता पर तिहरी मार” – आरडब्लूए, एओए
सामाजिक कार्यकर्त्ता भूपेंद्र नाथ ने सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर उपवास रखा। उन्होंने कहा-

“यह निगम की हिटलरशाही है। आरटीआई में हमने जब बढ़े टैक्स प्रस्ताव की जानकारी मांगी तो निगम कुछ नहीं दिखा पाया। जब मामला कोर्ट में लंबित है तो किस अधिकार से वसूली हो रही है?”

फेडरेशन ऑफ़ राजनगर एक्सटेंशन एओए अध्यक्ष एडवोकेट गजेन्द्र सिंह आर्य बोले—
“यहां निगम ने एक स्ट्रीट लाइट तक नहीं लगाई। फ्लैट बायर्स पहले ही जीडीए को EDC चार्ज देते हैं, फिर हर महीने मेंटेनेंस और अब हाउस टैक्स! यह जनता पर तिहरी मार है। टैक्स के नाम पर वसूली और काम के नाम पर ठेंगा।”
“हाईकोर्ट के फैसले का इंतजार” – महागुनपुरम रेज़िडेंट
महागुनपुरम निवासी विकास सिंह ने कहा—

“सोसायटी के कुछ लोग निगम के भ्रमजाल में आकर टैक्स जमा करा चुके हैं। लेकिन अब बाकी निवासी हाईकोर्ट के फैसले के बाद ही टैक्स देंगे। हमारी सोसायटी शहर भर के आंदोलनकारियों के साथ मिलकर इस लड़ाई में हिस्सा लेगी।”
राजनीतिक चुप्पी
सांसद, विधायक और मंत्रियों की चुप्पी ने भी सवाल खड़े कर दिए हैं। सूत्र बताते हैं कि अब दबाव बढ़ने पर कुछ नेता धीरे-धीरे बयानबाज़ी शुरू कर रहे हैं। लेकिन जनता पूछ रही है कि जब फैसले की धज्जियां उड़ाई जा रही थीं तो ये नेता चुप क्यों बैठे रहे?
आखिर निगम किसकी शह पर?
गाजियाबाद का यह मामला न केवल आर्थिक लूट का है बल्कि लोकतंत्र की मूल आत्मा पर भी चोट है। निगम में सदन का फैसला सर्वोपरि होते हुए भी अगर अधिकारी और निगम प्रशासन जनता पर 300% टैक्स थोप सकते हैं, तो सवाल लाजिमी है—
क्या गाजियाबाद नगर निगम में जनप्रतिनिधियों की आवाज़ दबाकर मनमाना रवैय्या चल रहा है?
क्या निगम अधिकारी जनता के साथ दोहरा खेल खेल रहे हैं?
अब निगाहें माननीय उच्च न्यायालय पर टिकी हैं, जहां से जनता को इस टैक्स की अति से राहत की उम्मीद है।