मैं सभी धर्मों और आस्थाओं का समान रूप से सम्मान करता हूँ: CJI गवई
NEWS1UP
विशेष संवाददाता
नई दिल्ली | देश की सर्वोच्च अदालत, जो न्याय का सर्वोच्च मंदिर मानी जाती है, सोमवार को उस समय चर्चा में आ गई जब भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. गवई के एक बयान को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया। मामला इतना बढ़ा कि एक वकील ने अदालत कक्ष में ही हंगामा करते हुए मुख्य न्यायाधीश पर जूता फेंकने की कोशिश की। हालांकि, सुरक्षा कर्मियों की सतर्कता से स्थिति बिगड़ने से पहले ही नियंत्रित कर ली गई।
CJI गवई का बयान और विवाद
दरअसल, सुनवाई के दौरान CJI गवई ने खजुराहो मंदिरों के संदर्भ में टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि “खजुराहो में शिव का एक विशाल लिंग है, यदि याचिकाकर्ता शैव धर्म के विरोधी नहीं हैं, तो वे वहां जाकर पूजा कर सकते हैं।” साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि “यदि यह जनहित याचिका प्रचार के लिए नहीं है, तो याचिकाकर्ता भगवान से ही प्रार्थना करें।” CJI की यह टिप्पणी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और देखते ही देखते विवाद का रूप ले लिया। कई लोगों ने इसे “शिव भक्तों का अपमान” करार दिया, जबकि कुछ ने इसे अदालत की टिप्पणी को गलत संदर्भ में प्रस्तुत करना बताया।
मुख्य न्यायाधीश की सफाई
मामले के तूल पकड़ने के बाद मुख्य न्यायाधीश गवई ने स्पष्ट किया कि उनके कथन का किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने का कोई इरादा नहीं था। उन्होंने कहा, “मैं सभी धर्मों और आस्थाओं का समान रूप से सम्मान करता हूँ। मेरी टिप्पणी को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है।”
अदालत में हंगामा और जूता फेंकने की कोशिश
सोमवार को जब कोर्ट की कार्यवाही चल रही थी, तभी एक वकील अचानक खड़ा हुआ और नारेबाज़ी करने लगा, “सनातन का अपमान नहीं सहेंगे!” इस दौरान उसने मुख्य न्यायाधीश की ओर जूता फेंकने की कोशिश की। लेकिन अदालत में मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत उसे काबू में कर लिया। गौर करने वाली बात यह रही कि इस पूरे घटनाक्रम के दौरान CJI गवई पूरी तरह शांत रहे। उन्होंने कार्यवाही को बाधित न होने देने का निर्देश देते हुए कहा, “इस तरह की घटनाओं से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। अदालत अपना कार्य जारी रखेगी।”
खजुराहो मंदिर: कला, आस्था और अध्यात्म का संगम
खजुराहो, मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित विश्वप्रसिद्ध मंदिर समूह है, जिसे “खजुराहो समूह के स्मारक” कहा जाता है। 950 से 1050 ईस्वी के बीच चंदेल वंश के राजाओं द्वारा निर्मित इन मंदिरों की संख्या कभी 85 थी, जिनमें आज लगभग 22 शेष हैं। ये मंदिर हिंदू और जैन दोनों धर्मों से जुड़े हैं, जो चंदेल राजाओं की धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक हैं। खजुराहो की मूर्तियाँ केवल शारीरिक सौंदर्य की नहीं, बल्कि आत्मिक मुक्ति और मानव जीवन के चार पुरुषार्थों धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का कलात्मक प्रतिनिधित्व करती हैं।
न्यायपालिका की गरिमा पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट जैसी सर्वोच्च संस्था में इस तरह की घटना ने न्यायपालिका की गरिमा और सुरक्षा व्यवस्था पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अदालतों में असहमति व्यक्त करने का अधिकार है, लेकिन हिंसात्मक या अपमानजनक व्यवहार लोकतांत्रिक मर्यादाओं के अनुरूप नहीं है।