October 5, 2025
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“हाँ मैं” : कला के ज़रिए आत्मविश्वास जगाने की पहल, 16 वर्षीय अनुवा गरोडिया की अनोखी कहानी!!

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कला केवल चित्र बनाने की कला नहीं है, बल्कि यह भावनाओं की भाषा है

बदलाव लाने के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होती


भूमिका वशिष्ठ

NEWS1UP

गुड़गाँव। उम्र चाहे कितनी भी कम क्यों न हो, अगर इरादे मज़बूत हों तो समाज में बदलाव लाना संभव है। इसका जीता-जागता उदाहरण हैं 16 वर्षीय अनुवा गरोडिया, जो पाथवेज़ स्कूल (Pathways School) गुड़गाँव की छात्रा हैं। अनुवा ने एक ऐसी पहल शुरू की है, जो बच्चों के जीवन में गहरा बदलाव ला रही है। उनकी यह पहल है “हाँ मैं” — एक सामाजिक अभियान जो कला को साधन बनाकर बच्चों में आत्मविश्वास और आत्मसम्मान जगाने का काम कर रहा है।

अनुभव से निकली राह

अनुवा ने बहुत कम उम्र में ही शिक्षा और सेवा के महत्व को समझ लिया था। वह पिछले पाँच वर्षों से दिल्ली के एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) में स्वेच्छा से बच्चों को पढ़ाने का काम कर रही थीं। इसी दौरान उन्होंने देखा कि कई बच्चे पढ़ाई और प्रतिभा में अच्छे होने के बावजूद आत्मसम्मान की कमी से जूझ रहे हैं। यह कमी उन्हें आगे बढ़ने से रोकती थी।

अनुवा कहती हैं, “मैंने महसूस किया कि बच्चे अक्सर अपनी तुलना दूसरों से करते हैं। जब वे खुद को कमतर समझने लगते हैं, तो धीरे-धीरे आत्मविश्वास खो बैठते हैं। मुझे लगा कि अगर हम उन्हें खुद को स्वीकारने का अवसर दें, तो वे बहुत आगे बढ़ सकते हैं।”

ग़ाज़ियाबाद के संस्कार स्कूल में बच्चों के साथ अनुवा

कला से आत्मविश्वास तक

दसवीं कक्षा के प्रोजेक्ट के हिस्से के रूप में अनुवा ने थेरापयूटिक आर्ट लाइफ कोच (Therapeutic Art Life Coach) का प्रमाणपत्र प्राप्त किया। इसके बाद उन्होंने एनजीओ में बच्चों के साथ आर्ट थेरेपी सत्र आयोजित किए। इन सत्रों में बच्चों ने रंगों, आकृतियों और कल्पना के माध्यम से अपनी भावनाएँ व्यक्त करना सीखा।

नतीजे बेहद सकारात्मक थे। जो बच्चे पहले झिझकते थे, उन्होंने कागज़ पर रंग भरकर अपने डर और हिचक को पीछे छोड़ दिया। कई बच्चों ने पहली बार खुलकर बताया कि वे क्या सोचते और महसूस करते हैं। इस अनुभव ने अनुवा को विश्वास दिलाया कि कला बच्चों के आत्मसम्मान को मज़बूत करने का प्रभावी साधन बन सकती है।

“हाँ मैं” का जन्म

इन अनुभवों ने ही “हाँ मैं” नामक पहल की नींव रखी। “हाँ मैं” का मक़सद है बच्चों को यह सिखाना कि वे खुद को और अपनी भावनाओं को “हाँ” कहें। अनुवा ने 8 से 12 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के लिए एक विशेष आर्ट थेरेपी वर्कबुक तैयार की।

इस वर्कबुक की ख़ास बात यह है कि यह बच्चों को कोई “सही” या “ग़लत” तरीका नहीं सिखाती। बल्कि यह उन्हें यह एहसास कराती है कि हर रंग, हर आकृति और हर कल्पना की अपनी अहमियत है। इस प्रक्रिया में बच्चा खुद को स्वीकारना और अपनी भावनाओं को पहचानना सीखता है।

कमला स्कूल हापुड़ में बच्चों के साथ अनुवा

अब तक की उपलब्धियाँ

जून 2025 में आधिकारिक रूप से लॉन्च हुई इस पहल ने अब तक दिल्ली-एनसीआर के 10 स्कूलों में 2000 से अधिक छात्रों तक अपनी वर्कबुक पहुँचाई है। अनुवा खुद स्कूलों में जाकर कार्यशालाएँ आयोजित करती हैं, जहाँ वे बच्चों और शिक्षकों को बताती हैं कि इस वर्कबुक का उपयोग कैसे किया जाए।

शिक्षकों ने माना कि इन गतिविधियों से बच्चों की सहभागिता बढ़ी है। कई छात्र, जो पहले कक्षा में चुप रहते थे, अब आत्मविश्वास से अपनी बात रखते हैं।

हापुड़ के कमला स्कूल में बच्चों के साथ अनुवा

विशेषज्ञों की राय

ओपीएस इंटरनेशनल स्कूल के सचिव डॉ. पराग पंडित कहते हैं, “हर बच्चा अपनी तरह से अनोखा है। लेकिन अक्सर वे अपनी ताक़तों को पहचान नहीं पाते। आत्मसम्मान की कमी उनकी प्रतिभा पर परदा डाल देती है। ‘हाँ मैं’ जैसी पहल बच्चों को अपनी विशिष्टता अपनाने और आत्मविश्वास बढ़ाने का अवसर देती है।”

कला की भाषा

अनुवा मानती हैं कि कला केवल चित्र बनाने की कला नहीं है, बल्कि यह भावनाओं की भाषा है। “कभी-कभी बच्चे अपनी बात शब्दों में नहीं कह पाते। लेकिन जब वे रंगों और आकृतियों से खेलते हैं, तो उनका मन खुलता है। यह प्रक्रिया उन्हें भीतर से मज़बूत बनाती है,” वह कहती हैं।

भविष्य की दिशा

आगे चलकर अनुवा “हाँ मैं” को और बड़े स्तर पर ले जाने की योजना बना रही हैं। उनका सपना है कि यह वर्कबुक देशभर के सरकारी और निजी स्कूलों तक पहुँचे। इसके अलावा, वह डिजिटल वर्कबुक और ऑनलाइन कार्यशालाओं के ज़रिए उन बच्चों तक भी पहुँचना चाहती हैं जो भौगोलिक दूरी के कारण लाभ नहीं ले पा रहे।

युवाओं के लिए प्रेरणा

अनुवा गरोडिया की यह पहल न केवल बच्चों को आत्मविश्वासी बना रही है, बल्कि समाज को यह संदेश भी दे रही है कि बदलाव लाने के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होती। कम उम्र में शुरू किया गया उनका यह प्रयास आने वाले वर्षों में न जाने कितने बच्चों के जीवन को सकारात्मक दिशा देगा।

“हाँ मैं” वास्तव में एक विश्वास है — यह विश्वास कि “मैं जैसा हूँ, वैसा ही क़ीमती हूँ।”

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