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‘ऐसे कुछ लोग ही दुनिया को बदल देते हैं’

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-डॉ कुंअर बेचैन की स्मृति में हुआ शानदार कवि सम्मेलन व सम्मान समारोह
-डॉ बेचैन की पुस्तक ‘सफ़र में हूं’ व प्रतिभा सुमन की पुस्तक ‘अर्बन नक्सल बीवी’ का लोकार्पण
-अभिनेता रज़ा मुराद कुँअर बेचैन काव्य कुटुम्भ सम्मान से नवाजे गये

NEWS 1 UP

गाज़ियाबाद महाकवि डॉ कुँअर बेचैन फाउंडेशन की ओर से हिंदी भवन में आयोजित कवि सम्मेलन व सम्मान समारोह छह घंटे से भी अधिक चला। इसमें महाकवि कुंअर बेचैन की पुस्तक ‘सफ़र में हूं’ व अभिनेत्री-कवयित्री प्रतिभा सुमन की पुस्तक ‘ अर्बन नक्सल बीवी’ का लोकार्पण भी किया गया।

इसके साथ ही वरिष्ठ कवि सोम ठाकुर “महाकवि डॉ कुँअर बेचैन साहित्य ऋषि सम्मान”, दिनेश रघुवंशीमहाकवि डॉ कुँअर बेचैन साहित्य मनीषी सम्मान”अभिनेता रज़ा मुराद महाकवि कुँअर बेचैन काव्य कुटुम्भ सम्मान से नवाजे गये।
कार्यक्रम का शुभारंभ वरिष्ठ भाजपा नेता बलदेव राज शर्मा और सभी रचनाकारों ने दीप प्रज्ज्वलन कर किया। डॉ बेचैन की बेटी कवयित्री वंदना कुँअर रायजादा ने सरस्वती वंदना पढ़ी। युवा कवि मोहित शौर्य ने अपनी कविता कुछ यूं पढ़ी- “उजड़े हुए चमन में लेकिन फूल ताजा हूं, कम उम्र में भी मैं सदियों का तकाजा हूं।”कवयित्री डॉ. अल्पना सुहासिनी ने ग़ज़ल पढ़ी-“सारी ही दुनिया बेमायनी लगती है, दो आंखों का खारा पानी लगती है।”

अभिनेता व कवि रवि यादव का ये शेर बहुत पसंद किया गया- ‘उसने बोला अलविदा, मैंने कहा स्वीकार, खामोशी से ढह गया, बातूनी सा प्यार।’ वंदना कुँअर रायजादा ने अपने पिताश्री को याद करते हुए कविता में अपने भाव कुछ यूं बयां किये- गीत, ग़ज़लों और छंदों से उकारु मैं सदा, आपकी इस पावन धरा को संवारु सदा। डॉ वागीश दिनकर ने कुँअर बेचैन की ग़ज़ल ‘हर तरफ बारुद का मौसम है, कहां जाकर रहें, आदमी भी हो गया है बम, कहां जाकर रहें’ को संस्कृत में अनुवाद करके सुनाया।

वरिष्ठ पत्रकार व शायर राज कौशिक ने अपने बेहतरीन शेर सुनाकर खूब दाद लूटी। उनका ये शेर बहुत पसंद किए गए- पहले फूलों से लदा एक शज़र आता है, उससे फिर लगता हुआ यार का घर आता है, धूल झोंकी मेरी आँखों में किसी ने जब से, मुझको पहले से अधिक साफ नज़र आता है। अभिनेत्री व कवयित्री प्रतिभा सुमन ने अपनी यथार्थवादी कविता पढ़ी-उनको पसंद नहीं आज़ाद ख़याल औरतें…’ । वरिष्ठ कवि डॉ. लक्ष्मी कांत वाजपेयी का यह मुक्तक बहुत पसंद किया गया- दर्द खुद झेल के खुशियों की फसल देते हैं, जिनमें ख़तरे हैं, उन्हीं राहों पर चल देते हैं, जिनकी सोचों में औरों की भलाई हर पल, ऐसे कुछ लोग ही दुनिया को बदल देते हैं। दिनेश रघुवंशी के इस शेर पर खूब दाद मिली- उम्मीद थी कि मुश्किलों में कोई देगा हल, वो जा रहा है और भी मुश्किल में डालकर, जिस दौर में बेसबब सब चीख रहे हैं, खामोश रह या बात में पैदा जमाल कर।

जाने माने शायर मासूम गाजियाबादी के शेरों को बहुत पसंद किया गया। उन्होंने महाकवि कुँअर बेचैन को याद करते हुए पढ़ा- वही तुम हो, वही मैं हूं, सभी कुछ है वही लेकिन, कोई तो है जिसकी कमी महसूस होती है, मैं उस रुहहियत के लिए लाया हूं कुछ फूल, यहां जिसकी खामोशी अब महसूस होती है। अभिनेता यशपाल शर्मा ने पुराने कवियों की कविताएं अपने अंदाज में सुनायीं, जबकि सुप्रसिद्ध अभिनेता रज़ा मुराद ने साहिर लुधियानवी की नज़्म ‘आप जाने क्या मुझको समझते हैं, मैं तो कुछ भी नहीं…के साथ ही डॉ कुँअर बेचैन की ग़ज़ल -चोट पे चोट देते जाने का शुक्रिया, पत्थर को बुत की शक्ल में लाने का शुक्रिया’ सुनायी। वरिष्ठ कवि सोम ठाकुर अपनी रचना कुछ यूं पढ़ी- कहां किसको कभी आसानियां बेहतर बनाती हैं, मुसलसल कोशिशें ही उसे दानिशवर बनाती हैं’।

फाउंडेशन के अध्यक्ष शरद रायजादा ने सभी कवि-मेहमानों व आगंतुकों का आभार व्यक्त किया। मुख्य अतिथि सांसद अतुल गर्ग ने अपने चुटीले संबोधन से लोगों को खूब हंसाया। विशिष्ठ अतिथि के रूप में पूर्व मेयर आशा शर्मा व वरिष्ठ भाजपा नेता पृथ्वी सिंह कसाना उपस्थित रहे। अध्यक्षता सोम ठाकुर ने की। संचालन डॉ अल्पना सुहासिनी और राज कौशिक ने किया। कुलदीप बरतरिया, रामअवतार राणा, राकेश गुप्ता, डा आर पी शर्मा, विनोद पाण्डेय, मनोज बरतरिया, मीनाक्षी, सिद्धू, अंचित, दुष्यंत, प्रवीन आर्य, आदि ने अतिथियों का स्वागत किया।

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