November 21, 2025
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जेवर के आसमान में इतिहास की उड़ान: ‘कैलिब्रेशन फ्लाइट’ ने दिखाई सटीकता की राह!

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भारत के सबसे बड़े ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट की तकनीकी परीक्षा सफल

संचालन के बेहद करीब नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट

NEWS1UP

प्रभात अरोड़ा

गौतमबुद्ध नगर। नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट यानी जेवर एयरपोर्ट ने शुक्रवार को वह मील का पत्थर छू लिया, जिसका इंतज़ार पूरे उत्तर भारत को था। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) की कैलिब्रेशन फ्लाइट ने यहां सफलतापूर्वक लैंडिंग की, और इसके साथ ही जेवर ने संकेत दे दिया है कि अब वह अपने संचालन चरण के बेहद करीब है। लेकिन यह कोई सामान्य उड़ान नहीं थी। यह उड़ान थी सटीकता, सुरक्षा और उच्च तकनीक के उस संगम की, जो किसी भी नए हवाई अड्डे को ‘उड़ान के लिए तैयार’ घोषित करने से पहले सबसे अहम परीक्षा मानी जाती है।

 क्या होती है कैलिब्रेशन फ्लाइट ?

कैलिब्रेशन फ्लाइट किसी सामान्य यात्री विमान की तरह नहीं होती। यह एक विशेष रूप से सुसज्जित विमान होता है, जिसमें अत्याधुनिक उपकरण लगे होते हैं जो हवाई अड्डे के नेविगेशन, संचार और लैंडिंग सिस्टम की सूक्ष्मतम जांच करते हैं। जब कोई विमान रनवे की ओर उतरता है, तो उसकी दिशा, ऊँचाई और गति, सब कुछ जमीन पर लगे इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम से मिलने वाले संकेतों पर निर्भर करता है। यदि ये संकेत एक सेकंड के लिए भी डगमगाए, तो सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। इन्हीं संकेतों की शुद्धता और सटीकता का परीक्षण करना ही कैलिब्रेशन फ्लाइट का मकसद होता है।

 आसमान से होती है परख ज़मीन की

इस उड़ान के दौरान विमान को बार-बार रनवे के ऊपर, आसपास और अलग-अलग ऊँचाइयों पर उड़ाया जाता है। कई बार तो विमान रनवे को छूने जितना नीचे आकर फिर ऊपर उठ जाता है। हर सेकंड हज़ारों डेटा पॉइंट्स रिकॉर्ड किए जाते हैं, सिग्नल की ताकत, स्थिरता और दिशा की जांच के लिए।

कॉकपिट में सिर्फ पायलट ही नहीं, बल्कि फ्लाइट इंस्पेक्टर, टेक्निकल इंजीनियर और एयर ट्रैफिक कंट्रोल विशेषज्ञों की एक टीम भी मौजूद रहती है, जो हर छोटे से छोटे बदलाव पर नज़र रखती है। अगर कोई त्रुटि मिलती है, तो उसे तुरंत सुधारा जाता है और जरूरत पड़ने पर टेस्ट दोहराया जाता है।

 किन सिस्टम्स की होती है जांच ?

कैलिब्रेशन फ्लाइट के दौरान ये मुख्य सिस्टम जांचे जाते हैं-

  • ILS (इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम): ताकि विमान को उतरने की दिशा और ढलान का सही संकेत मिले।

  • VOR और DME: यानी रेडियो सिग्नल के जरिए विमान की दिशा और दूरी की पुष्टि।

  • रडार और कम्युनिकेशन सिस्टम: ताकि विमान और कंट्रोल टावर के बीच संवाद निर्विघ्न बना रहे।

इन सभी उपकरणों की जांच इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गनाइजेशन (ICAO) के कड़े अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार की जाती है।

 जेवर एयरपोर्ट के लिए इसका क्या मतलब है ?

इस सफल परीक्षण का अर्थ साफ है कि जेवर एयरपोर्ट पर स्थापित तकनीकी प्रणालियाँ अब अंतरराष्ट्रीय स्तर की सटीकता और सुरक्षा मानकों को पूरा कर रही हैं। यह सफलता एयरपोर्ट के लिए ऑपरेशनल क्लियरेंस की दिशा में एक बड़ा कदम है। अब अगला चरण होगा ड्राई रन,  जिसमें वास्तविक यात्रियों की आवाजाही, सुरक्षा जांच, सामान की लोडिंग-अनलोडिंग और रनवे प्रबंधन का अभ्यास किया जाएगा।

अगर यह भी सफल रहा, तो नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट जल्द ही ट्रायल फ्लाइट्स और फिर व्यावसायिक उड़ानें शुरू कर सकेगा।

 उत्तर भारत के लिए नए युग की शुरुआत

जेवर एयरपोर्ट सिर्फ एक हवाई अड्डा नहीं, बल्कि उत्तर भारत के एविएशन नेटवर्क की रीढ़ बनने जा रहा है। दिल्ली-एनसीआर, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के यात्रियों के लिए यह एक बड़ा विकल्प होगा। इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर दबाव कम होगा और देश-विदेश की नई उड़ानों के लिए रास्ता खुलेगा।

पहले चरण में एयरपोर्ट की क्षमता 1.2 करोड़ यात्रियों प्रतिवर्ष होगी, जबकि आने वाले वर्षों में यह 7 करोड़ यात्रियों तक पहुंचने का अनुमान है, जिससे यह देश के सबसे बड़े हवाई अड्डों में शामिल हो जाएगा।

 सटीकता की वह उड़ान जिसने बदला जेवर का आसमान

कैलिब्रेशन फ्लाइट की यह सफल लैंडिंग केवल एक तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि जेवर के सपनों के उड़ान भरने का क्षण है। यह संकेत है कि वर्षों की तैयारी, निर्माण और परीक्षण अब परिणाम देने को तैयार हैं। अब जब विमानन का नया सूरज जेवर के आकाश में उगा है, तो यह सिर्फ एक एयरपोर्ट नहीं, बल्कि उत्तर भारत की प्रगति, व्यापार और पर्यटन के नए युग की उड़ान है। जेवर एयरपोर्ट की कैलिब्रेशन फ्लाइट का सफल परीक्षण यह संदेश देता है कि भारत का विमानन क्षेत्र अब विश्वस्तरीय मानकों पर खरा उतर रहा है। यह उड़ान केवल तकनीक की नहीं, विश्वास, उम्मीद और विकास की भी उड़ान है।

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