जेएनयू में फिर लहराया लाल झंडा!
लेफ्ट यूनाइटेड का क्लीन स्वीप
अदिति मिश्रा बनीं अध्यक्ष
एबीवीपी को फिर झटका!
NEWS1UP
संवाददाता
नई दिल्ली। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्रसंघ चुनाव 2025 के नतीजे घोषित हो गए हैं, और इस बार एक बार फिर वामपंथी गठबंधन लेफ्ट यूनाइटेड ने पूरे सेंट्रल पैनल पर कब्ज़ा जमाकर इतिहास दोहरा दिया है। चारों प्रमुख पदों अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव और संयुक्त सचिव, पर लेफ्ट यूनाइटेड के उम्मीदवारों ने शानदार जीत दर्ज की है।
इस साल हुए चुनाव में कुल 20 उम्मीदवार मैदान में थे। अध्यक्ष पद पर सात उम्मीदवारों के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला, लेकिन अंततः लेफ्ट यूनाइटेड की अदिति मिश्रा ने सभी को पछाड़ते हुए जीत हासिल की। अदिति ने एबीवीपी के विकास पटेल को हराकर अध्यक्ष पद अपने नाम किया।
उपाध्यक्ष पद पर भी लेफ्ट यूनाइटेड की के. गोपिका बाबू ने बाज़ी मारी। उन्होंने एबीवीपी की तान्या कुमारी को कड़ी टक्कर देते हुए निर्णायक बढ़त बनाई। महासचिव पद पर सुनील यादव (लेफ्ट यूनाइटेड) ने एबीवीपी के राजेश्वर कांत दुबे को परास्त किया, जबकि संयुक्त सचिव पद पर दानिश अली (लेफ्ट यूनाइटेड) ने एबीवीपी के अनुज दमारा को मात दी। इस तरह चारों पदों पर लेफ्ट यूनाइटेड ने क्लीन स्वीप करते हुए कैंपस में एक बार फिर वामपंथी लहर को मजबूत किया है।
2015 के बाद फिर से एबीवीपी का सूखा

गौरतलब है कि जेएनयू छात्रसंघ चुनावों में 2015 के बाद से एबीवीपी की स्थिति कमजोर रही है। पिछले वर्ष उसने एक दशक के बाद संयुक्त सचिव का पद जीतकर वापसी की उम्मीद जगाई थी। 2015 में एबीवीपी ने आख़िरी बार यह पद अपने नाम किया था, लेकिन उसके बाद से लगातार वामपंथी संगठनों ने कैंपस की राजनीति पर अपना दबदबा बनाए रखा है।
इस बार फिर से चारों पदों पर हार के साथ एबीवीपी के लिए यह नतीजे निराशाजनक हैं। चुनावी परिणामों ने साफ़ कर दिया है कि जेएनयू में वामपंथी विचारधारा का जनाधार अब भी गहराई से कायम है।
कैंपस में जश्न और राजनीतिक संदेश
चुनाव नतीजों के बाद जेएनयू कैंपस में लेफ्ट यूनाइटेड के समर्थकों ने जश्न मनाया। लाल झंडे लहराते हुए छात्रों ने नारे लगाए “लाल सलाम!”, “इनक़लाब ज़िंदाबाद!” और “जेएनयू बोलेगा – लेफ्ट ही लौटेगा!” वहीं, एबीवीपी और एनएसयूआई के कार्यकर्ता नतीजों की समीक्षा में जुटे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जेएनयू का यह रुझान देशभर के विश्वविद्यालयों की छात्र राजनीति के लिए संकेतक साबित होता है, जहां विचारधारा की जंग अब भी तेज़ है।
जेएनयू में लेफ्ट की ‘विचारधारा की जीत’ 
लेफ्ट यूनाइटेड की इस जीत को सिर्फ चुनावी नहीं, बल्कि विचारधारात्मक जीत भी कहा जा रहा है। अदिति मिश्रा ने जीत के बाद कहा-
“यह जीत लोकतांत्रिक, समावेशी और छात्र अधिकारों की राजनीति की जीत है। हमने छात्र हितों, शिक्षा में समानता और कैंपस की आज़ादी की बात की, और छात्रों ने इस पर भरोसा जताया।”
इस नतीजे के साथ एक बार फिर यह स्पष्ट हो गया है कि जेएनयू में वाम राजनीति की जड़ें अब भी मजबूत हैं, और विरोधी संगठनों को अपनी रणनीति पर नए सिरे से विचार करने की ज़रूरत है।
