Latest

कष्टों का नाश कर सुख-संपदा देती है दशा माता

0
0
0

Report News1up

दशा माता व्रत आज
********
होली के दसवें दिन हिंदू धर्म में विवाहित महिलाएं अपने परिवार की सलामती और सुखमय जीवन के लिए चैत्र कृष्ण दशमी के दिन दशामाता का व्रत रखती हैं।

सनातन धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार विवाहि महिलाएं पति और परिवार की सलामती के लिए दशा माता का व्रत धारण करती हैं। नियमानुसार इस दिन पीपल के पेड़ का सच्ची श्रद्धा से पूजन करती हैं। पूजन के बाद नल दमयंती की व्रत कथा का श्रवण किया जाता है। धार्मिक ग्रंथों में दिए गए उल्लेख के अनुसार इस दिन झाड़ू की खरीददारी करना भी शुभ माना जाता हैं। इस दिन पीपल के वृक्ष की छाल को उतारकर घर लाया जाता है। उसे घर की अलमारी या तिजोरी में सोने के आभूषण के साथ रखा जाता है। व्रत धारण करने वाली महिलाएं एक वक्त भोजन का धारण करती हैं। खास बात यह है कि, उपवास तोड़ते समय किये जाने वाले भोजन में नमक का प्रयोग बिलकुल नहीं किया जाता हैं।

दशामाता पूजा का शुभ मुहूर्त
====================
दशा माता 2023 का व्रत : 17 मार्च 2023, शुक्रवार को किया जाएगा।
प्रारंभ तिथि 16 मार्च 2023, शाम 4 बजे से
समाप्ति तिथिि 17 मार्च 2023, दोपहर 2 बजे तक

दशा माता व्रत पूजन विधि
===================
चैत्र महीने की दशमी तिथि को हिन्दू महिलाओं द्वारा इस व्रत को रखा जाता हैं। घर की सुहागन स्त्री मंगल कामना के लिए दशामाता व्रत रखती हैं। दशा माता पूजा में कच्चे सूत का 10 तार का डोरा, जिसमें 10 गठानें लगाते हैं, लेकर पीपल की पूजा करती हैं। व्रत की पूजा के समय कथा का वाचन अवश्य करना चाहिए.। एक ही प्रकार का अन्न एक समय खाती है। दशामाता बेल के पूजन के बाद इसे गले में पूजा जाता हैं।

सुबह नहाने धोने के बाद इस व्रत को धारण किया जाना चाहिए। जिसकी पूजा घर में ही सम्पन्न की जा सकती हैं। घर के एक साफ़ सुथरे कोने में स्वास्तिक का चिह्न बनाए।

तथा उनके पास 10 बिंदियाँ बनाए। पूजा की सामग्री में रोली, मौली , सुपारी, चावल, दीप, नैवेद्य, धुप आदि को अवश्य लाए।

अब दश माता की बेल बनाए जो एक धागे में गांठे बंधकर उन्हें हल्दी रंग में रंगकर बनाए। पूजन के बाद इसे गले में धारण करना चाहिए। यह धागा वर्षभर गले में धारण किया जाता हैं।

अगले वर्ष की दशा माता के पूजन तक इसे पहनकर रखा जाता हैं जिसे पूजा के बाद उतार दिया जाता हैं। इस धागे को पहनने के बाद मानव मात्र का बुरा वक्त समाप्त होकर अच्छे समय की शुरुआत हो जाती हैं।

यह व्रत आजीवन किया जाता है जिसका उद्यापन नहीं होता हैं।

दशामाता की कथा
==============
प्राचीन समय के एक राजा नल और रानी दमयंती से जुड़ी हुई हैं। एक समय की बात हैं राजा नल का राज्य सुख सम्पन्न था। प्रजा राज्य में सुख से जीवन जी रही थी। एक बार की बात है कि, होली के दिन, राजब्राह्मणी महल में आई। उन्होंने रानी को दशामाता का डोरा दिया। जिसके बाद उन्होंने रानी से कहा कि, आज के दिन से सभी स्त्रियाँ दशा माता का व्रत रखकर डोरा धारण कर रही हैं। ऐसा करने से कष्टों का नाश होता है तथा सुख संपदा आती हैं।

रानी ने उस धागे को विधि के अनुसार अपने गले में बांध लिया तथा दशामाता का व्रत रखने का निर्णय कर लिया। अचानक कुछ ही दिन बाद राजा की नजर रानी दमयंती के उस गले के डोरे पर पड़ी तो उन्होंने पूछा। आप महारानी हो, हीरे जवाहरात आपके किसकी कमी हैं फिर से गले में डोरा क्यों डाला हैं कहते हुए झट से वह डोरा तोड़कर जमीन पर फेक दिया।

दमयन्ती गई और उसने फेके हुए डोरे को उठाया तथा नल से कहा- राजन आपने दशा माता का अपमान करके अच्छी नहीं किया। एक दिन रात में जब राजा सो रहे थे तो माता दशा उनके सपने में एक बुढ़िया के रूप में आई और कहा। राजन आपका भाग्य अच्छा चल रहा था मगर अब बुरा वक्त आरम्भ होने वाला हैं आपने मेरा अपमान जो किया, इतना कहते ही वह अद्रश्य हो गई।

इस बात को कुछ ही दिन बीते थे कि राजा नल का राज्य कंगाल होने की कगार पर आ खड़ा हुआ। राजा के समस्त ठाठ बाट, रजवाड़े, हाथी घोड़े धन दौलत सब नष्ट हो गई।

तब राजा ने रानी से कहा आप अपने मायके चली जाओ, मगर दमयन्ती ने कहा मैं आपकों इस हांलात में छोड़कर कैसे जा सकती हूँ। जो भो हो हम मिलकर परिस्थतियों का सामना करेगे।

तब राजा नल ने कहा तो हमें रोजी रोटी के लिए किसी अन्य राज्य में जाकर नौकरी करनी पड़ेगी। यह सोचकर राजा रानी वहां से चल पड़े राह में उन्हें एक भील राजा का महल दिखाई दिया, वे वहां गये तथा अपने दोनों राजकुमारों को भील राजा के यहाँ अमानत पर छोड़ आए।

कुछ दूर निकले तो उनके एक मित्र राजा का महल आया, जब वे दोनों वहां गये तो राजा ने उनका खूब आदर सत्कार किया। अच्छे पकवानों के साथ उन्हें खाना खिलाया तथा रात को अपने ही शयन कक्ष में सुला दिया, रात में अचानक राजा की नजर एक खूंटी में टंगे कीमती हार पर नजर पड़ी, जिससे वह महल की खूंटी तेजी से निगल रही थी कुछ ही देर बाद वह उसे निगल गई।

राजा की हैरानी का कोई पार नहीं था उसने रानी को यह बात बताई तथा रातोरात वहां से भाग निकलने को कहा, यदि राजा ने सुबह हार का पूछ लिया तो वे क्या जवाब देगे।

जब नल और दमयंती रात को चले गये तो अगले दिन सुबह रानी ने खूंटी की तरफ देखा तो हार वहां नहीं था। उसने तुरंत आवाज दी तथा राजा को कहा आपके कैसे मित्र हैं।

आपने रात में उन्हें यहाँ ठहराया और वे यहाँ से चोरी करके भाग गये। राजा ने रानी को समझाने की पूरी कोशिश कि उन्हें चोर मत कहो आप धीरज रखो वो मेरे मित्र है तथा ऐसा नहीं कर सकते हैं।

जब नल और दमयंती आगे के लिए निकले तो उनकी बहिन का घर आया, किसी मुखबिर ने उनकी बहन तक यह संदेश पहुचा दिया था कि उनकी भाई और भाभी अकेले बुरी हालात में यहाँ हैं।

बहिन थाली में कांदा रोटी लेकर गई और भाई भाभी को दिया। राजा ने अपने हिस्से के भोजन को खा लिया तथा रानी ने उसे गाढ़ दिया।

जब वे वहा से आगे निकले तो नदी का किनारा आया। राजा ने कुछ मछलियाँ पकड़ी तथा रानी को उसे भूनने के लिए देकर स्वयं गाँव के साहूकार के यहाँ गया जो उस दिन सामूहिक भोज करवा रहा था।

राजा जब स्वयं खाकर अपनी पत्नी के लिए खाना लेकर आ रहा था तो एक पक्षी ने उस पर झपट्टा मारा और सारा खाना गिर गया, इससे राजा बहुत व्यतीत हुए उन्होंने सोचा रानी के मन में यही रहेगा कि वह अकेला खाकर आ गया।

वहीँ दूसरी तरफ रानी की मछलियाँ जीवित होकर नदी में कूद गई तो उन्हें भी यह लगा राजा सोचेगे कि रानी अकेली उन्हें खा गई. दोनों मिले तो आँखों ही आँखों में एक दूजे की बात को भाप गये तथा आगे की यात्रा के लिए निकल पड़े।

आगे चलते चलते रानी का मायका आ गया, अब राजा रानी ने यही पर काम कर लेने का निश्चय किया। रानी अपने ही पिताजी के राज दरबार में दासी बनकर रहने लगी तथा राजा उस गाँव के एक तेली की घानी पर काम करने लगे।

कुछ महीने बाद होली का दिन आया उस सभी रानियों ने स्नान किया तथा सिर धोया। दासी ने भी स्नान किया। उस दासी दमयंती ने सभी रानियों का सिर गुथा, उसने राजमाता का भी सिर गुथा। तब राजमाता ने कहा मैं भी आपका सिर गूथ दी। राजमाता दासी का सिर गुथने लगी कि उन्हें सिर पर पद्म का निशान दिखाई दिया तो उनकी आँखों में आंसू आ गये एक आंसू दासी की पीठ पर छलका तो उसने राजमाता के रोने का कारण पूछा तो राजमाता भावुक होकर कहने लगी।

मेरे भी एक बेटी है जिनके सिर पर पद्म का निशाँ हैं मुझे यह देखकर अपनी बेटी की याद आ गई। तब दासी ने सारा सच उगल डाला तथा अपनी माँ से कहा कि मैं दशा माता का व्रत रखुगी तथा अपने पति की गलती की माफी की याचना करुगी।

जब दासी की माँ ने अपने ज्वाई के बारे में पूछा तो दासी ने बताया कि वो गाँव के घासी के यहाँ काम करते हैं। तब सैनिकों को वहां भेजा गया। राजा को महल बुलाया उन्हें नवीन वस्त्र पहनाए तथा भोजन कराया।

रानी दमयंती ने दशमाता का व्रत रखा, उनके आशीर्वाद से राजा रानी के दिन लौट आए दमयंती के पिता ने खूब सारा धन, लाव-लश्कर, हाथी-घोड़े आदि देकर बेटी-जमाई को बिदा किया।

घर वापसी के रास्ते में वे उस स्थान पर गये जहाँ मछलियों को भुना था। तब दोनों ने पक्षी द्वारा भोजन गिराने तथा मछलियों के जीवित हो जाने की घटना एक दूसरे के साथ साझा की। जब वे अपनी बहिन के गाँव गये तब रानी ने जिस जगह भोजन गाढ़ा वहां देखा तो सोना और चांदी थे।

अब राजा और रानी अपने मित्र राजा के महल भी गये वहां उनका खूब आदर सत्कार हुए तथा विश्राम के लिए उसी कक्ष में भेजा। रात को राजा ने देखा तो उसी खूंटी से वह कीमती हार निकल रहा था। जिसे उसने निगल लिया था।

अगले दिन वे भील राजा के यहाँ गये तथा अपने पुत्रों को लेकर राजधानी पहुंचे। नगर पहुंचते ही उनका खूब आदर सत्कार हुआ तथा राजा नल उसी ठाठ बाठ से राजा बने।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!